तेरी ओर
जैसे खेतों में लहराती सरसों की चादर...या चाँद की ओडनी ओढ़े यह रात.
जैसे मदहोश कर देने वाली रात की रानी, या पलचीन में छुपी एक अधूरी कहानी.
जैसे कभी घर के आँगन में सूरज धीरे से कदम रखता है,
या जैसे कभी बर्फ से ढकी धरती पर एक फूल उगता है.
कभी गाओं की गलियों में खिलखिलते बच्चों की हसी में छुप जाती हो,
तो कभी मेरे तकिये तले एक ख्वाब सजाती हो
जैसे पहाड़ों में चलती ठंडी हवा मुझे अपने आप से बाँध देती है,
वैसे ही तुम्हारा एक ख़याल मुझे ऐसे जाकड़ लेता है जैसे नदी सागर को
जैसे ऊँचे ऊँचे पहाड़ों से झरना ज़ोर से धरती की तरफ़ गिरता है...वैसे ही मैं ना जाने क्यूँ तुम्हारी ओर खिछा चला जाता हूँ.